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देश-विदेश

*बुरा न मानो, जीतने वालों की होली है!*

*बुरा न मानो, जीतने वालों की होली है!*

भारतीय वार्ता 

 

 

*(व्यंग्य आलेख : राजेंद्र शर्मा)*  

 

देखी, देखी, इन सेकुलर वालों की एंटी-हिंदूता देखी! त्रिपुरा मेें मोदी पार्टी की दोबारा जीत, इन्हें हजम नहीं होने की बात तो फिर भी समझी जा सकती है। आखिर, कोई भी आसानी से कैसे मान सकता है कि इस जमाने में भी पब्लिक को, एक बार ही नहीं, बार-बार उल्लू बनाया जा सकता है। ये तो वैसे भी आम लोगों को सिर पर चढ़ाने वाले ठहरे। ये आसानी से कैसे मान लेेंगे कि मोदी क्या शै है! मोदी का जादू कैसे चलता है? पर इन्हें तो मोदी पार्टी का अपनी जीत का जश्न मनाना तक हजम नहीं हो रहा है। जीत के जश्न के लिए मोदी जी की पार्टी ने विरोधियों के दो-चार सौ घर-दफ्तर क्या जला दिए, यहां-वहां सौ-दो सौ की खोपडिय़ों पर लट्ठ-वट्ठ क्या खडक़ा दिए, भाई लोगों ने क्या यही डैमोक्रेसी है, ये कैसी डैमोक्रेसी है, का शोर मचा दिया! वह तो राहुल गांधी तक या तो खबर नहीं पहुंची या उन्हें पैगासस, अडानी वगैरह का रोना रोने से टैम नहीं मिला, वर्ना उन्होंने तो कैंब्रिज के बच्चों के सामने भी डैमोक्रेसी की मम्मी की शिकायत कर दी होती।

 

अब कोई इनसे पूछे कि डैमोक्रेसी का मतलब क्या यह है कि हिंदू पार्टी, अपनी हिंदू परंपरा के अनुसार मोदी जी जीत का जश्न भी नहीं मना सकती है? हिंदू परंपरा के अनुसार, अगर हिंदुस्तान में जश्न नहीं मनाया जाएगा, तो क्या पाकिस्तान में मनाया जाएगा? अब दुनिया कुछ भी कहेे, हिंदुस्तान में तो हिंदू परंपरा से ही जश्न मनाया जाएगा। और होली पर जीत होगी, तो जश्न भी होली की तरह ही मनाया जाएगा। बेशक, रंग भी उड़ाया जाएगा, मीठा-वीठा भी खाया जाएगा, पर मामला होली का है, तो चाहे शगुन को ही सही, होलिका को जलाया भी जाएगा। मान लो कि बड़ी जीत का शगुन थोड़ा बड़ा भी हो गया, विरोधियों के दो-चार सौ घर-दफ्तरों का दहन हो भी गया तो, उसमें इतनी हाय-हाय करने की क्या बात है? होली पर कुछ हो भी जाए, तो उसका बुरा कौन मानता है, जी! बुरा न मानो होली है!

 

पर ये सेकुलर वाले नहीं सुधरेंगे। ये तो हमेशा हिंदुओं के जश्न पर रंग में भंग करने के चक्कर में रहते हैं। बताइए, मोदी जी की जीत हुई है। पूर्वोत्तर में मोदी जी की जीत हुई है। लगातार दूसरी बार मोदी जी की जीत हुई है। लेकिन, खुद मोदी-मोदी करना तो दूर रहा, ये तो मोदी जी के दिल्ली में एक बार फिर जीत का जुलूस निकालकर, मोदी-मोदी कराने में भी, पख निकालने में लगे हुए थे। होली के मौके का लिहाज कर के, मोदी-मोदी करने वालों के तरंग में जरा ज्यादा ऊपर चढ़ जाने का बुरा न मानना तो दूर, पट्ठे भंग की तरंग की ही बुराई करने लगे। कह रहे हैं तरंग के चक्कर में ये मोदी-मोदी हो रही है, वर्ना जश्न तो ये जबर्दस्ती का ही है। अगर ये जबर्दस्त कायमाबी है, तो नाकामी किसे कहेंगे? यानी होली पर भी मोदी पार्टी के जरा से तरंग में आने का बुरा मानने से बाज नहीं आ रहे हैं ये बंदे।

 

मोदी ने जरा सा तरंग में यह क्या कह दिया कि अब अगला नंबर केरल का है, पट्ठे जुट गए मोदी-मोदी करने वालों की भंग की तरंग उतारने में। वहां हजारों किलोमीटर दूर से पिनरायी बाबू ने हाथ के हाथ एलान भी कर दिया कि ये तो मुंंगेरीलाल के हसीन सपने हैं। तरंग उतरेगी, तो सपना टूट जाएगा। त्यौहार के मौके पर ऐसे किसी का मजा कौन खराब करता है, भाई। पर ये हिंदू-विरोधी दूसरों का होली का मजा बिगाडऩे का मौका कैसे छोड़ देंगे। बैठ गए आंकड़े लेकर, हिसाब लगाने कि केरल में तो मोदी जी पार्टी रिवर्स में चल रही है। जैसे-तैसे और न जाने क्या-क्या जोड़-जुगाड़ लगाकर, पिछली विधानसभा में पहली बार बेचारों का खाता खुला था, मोदी जी वाले खातों की तरह, नाम मात्र के बैलेंस वाला। उसके बाद, लोकसभा के चुनाव में खाता तो खैर कहां खुलना था, पर वोट पहले से भी घट गया। इस बार विधानसभा चुनाव में तो बैलेंस जीरो होने से, खाता ही बंद हो गया। केरल से गाड़ी रिवर्स होनी शुरू हुई है, अगले साल तक कहीं दिल्ली की गद्दी का रास्ता भी बंद नहीं हो जाए!

 

पर अगले साल तक ही बात रहती, तो फिर भी गनीमत थी। हिसाबी-किताबी लोग तो इस वाली जीत के गुब्बारे में भी पिन चुभोने पर उतर आए। कहते हैं कि यूं तो, जो जीता वही सिकंदर कहलाता है और मोदी जी की पार्टी को, जीते कोई भी, गद्दी पर बैठने का जुगाड़ कर के सिकंदर बनना खूब आता है। बल्कि अब तो दिल्ली नगर निगम से और आगे की शुरूआत हो गयी है -- हार गए, सरकार भी नहीं बना पाए, तब भी दूसरे को सरकार न चलाने देेकर, सिकंदर कहलवाना भी उन्होंने सीख लिया है। पर हर जीतने वाला सिकंदर भले कहलवा ले, पर हरेक सिकंदर होने का डंका पिटवाने वाला, जीता हुआ नहीं माना जाता है। तीनों राज्यों में चुनाव के बाद मोदी पार्टी सरकार में भले ही बैठी नजर आए, कुल मिलाकर उसकी जमीन कुछ न कुछ सिमटी ही है। मेघालय में और नगालेंड में सीटें जस की तस रही हैं, तो त्रिपुरा में उसकी सीटें भी पिछली बार के मुकाबले ठीक-ठाक घट गयी हैं। यह हार न सही, मोदी-मोदी कराने वाली जीत तो किसी भी तरह नहीं है।

 

और तो और यह भी कह रहे हैं कि तीन में से एक, त्रिपुरा में भले ही मोदी पार्टी का सिकंदर होने का दावा बनता हो, कम से कम मोदी, मोदी करने वाला सीएम तो होगा। पर बाकी दो में सिकंदर होने का भी मोदी पार्टी का दावा जबर्दस्ती का है। फिर भी नगालेंड में मोदी पार्टी का बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होना फिर भी समझ भी लिया जाए, सिकंदर न सही पर सिकंदर के दरबारी बनकर तो चुनावी लड़ाई लड़े थे। पर मेघालय में; साठ की साठ सीटों पर लडक़र पिछली बार जितनी ही कुल दो सीटें जीतीं, ऊपर से वोट भी कुछ घट गया और बाकायदा मोदी पार्टी को हराकर, कोनराड संगमा सिकंदर बना। पर जीता कौन -- मोदी, मोदी, मोदी! यह सिकंदर होना है या पांचवां सवार बनना। ऐसे सिकंदर होना भी कोई सिकंदर होना है, लल्लू!

 

पर यही तो इन हिंदू-विरोधियों की प्राब्लम है। ये मोदी जी को कभी नहीं जान पाएंगे कि वह क्या चीज हैं। मोदी जी तो वो चमत्कारी फकीर हैं कि पिछले साल के आखिर में जब तीन में से सिर्फ एक गुजरात जीते थे और हिमाचल और दिल्ली बाकायदा हारे थे, तब भी दिल्ली में विजय जुलूस निकालकर, उन्हीं ने जीत का डंका बजाया था और मोदी-मोदी करवाया था। इस बार तो फिर भी तीनों जगह सरकार में बैठेंगे। यानी मोदी जी की जीत, किसी सरकार-वरकार में जीत की मोहताज थोड़े ही है। और भैया जीतने वाले जब होली मनाएं, जिसे खतरा हो अपना खुद देख ले। वो हुरियार ही क्या, जिसके हाथ-पांव काबू में रहें। अपने कपड़े, मड़इया, दुकान, लोग खुद बचाएं; बुरा मानना मना है। बुरा मानने वाले, हिंदू-विरोधी से लेकर राष्ट्र-विरोधी तक करार दिए जाने का जोखिम उठाकर, बुरा मानें।

 

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं।)*

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