खेळामुळे विद्यार्थ्यांचे जीवन समृद्ध होते, आमदार संजय देरकर.
वणी:- दैंनदिन शिक्षणासोबत विद्यार्थ्यांनी नियमित खेळणे आवश्यक आहे. खेळामुळे शरीर निरोगी राहते. व बुध्दी तल्लख होते....
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देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से एक ऐसी तस्वीर आई है जिसे सुनने और समझने की बहुत ही जरूरत है, बीती रात महाराष्ट्र में जो हुआ वह अपने आप में इतिहास बन गया
2019 विधानसभा चुनाव के बाद आधी रात में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के साथ शपथ ग्रहण की और कुछ ही घंटों बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शरद पवार के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक अलग राजनीति इतिहास रच दिए और नाम महा विकास आघाडी रखा गया, रूप दिया गया कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नतीजा विधायकों के साथ संबंध नहीं रहे अच्छे तो आधी रात में ही खाली करना पड़ा मुख्यमंत्री आवास जो अपने आप में एक इतिहास बन गया
शिवसेना के 35 विधायक रातों रात महाराष्ट्र छोड़कर गुजरात चले जाते हैं और उद्धव ठाकरे को इसकी भनक तक नहीं लगती। मतलब साफ है कि आपका अपने विधायकों से कोई संवाद ही नहीं था। व्यक्तिगत स्तर पर उनसे कोई रिश्ता ही नहीं था।
वरना लालच कितना भी बड़ा क्यों न हो, नाराज़गी कितनी भी ज़्यादा क्यों न हो व्यक्तिगत संबंधों का नैतिक दबाव हर किसी पर रहता है और ऐसा अतिवादी कदम उठाने से पहले कोई भी शख्स दस बार सोचता है या आपको अपनी नाराजगी से अवगत करवाता है।
लेकिन जब आप राजनीति को राजनीति की तरह न करके उसे दस से पांच की नौकरी की तरह करते हो, ये मानकर चलते हो कि आपके बाप-दादा की वजह से आपके साथियों की राजनीतिक वफादारी हमेशा बनी रहेगी तो आप उन सम्बन्धों को मज़बूत करने की कोई व्यक्तिगत कोशिश नहीं करते।
यही गलती उद्धव ठाकरे ने की। यही गलत चिराग पासवान से हुई। यही गलती उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कर रहे हैं और राहुल गांधी की इसी गलती ने पूरी की पूरी कांग्रेस का सत्यानाश कर दिया।
चिराग को छोड़कर उनकी पार्टी के सभी पांचों सांसद इस्तीफा दे देते हैं। चाचा पशुपति पारस खुद को असल एलजेपी घोषित कर देते हैं और चिराग को भनक तक नहीं लगती। यूपी चुनावों में तमाम मुद्दों के बावजूद अखिलेश चुनाव से छह सात महीने पहले सक्रिय होते हैं।
बहुत से जानकारों का मानना है कि अगर अखिलेश लगातार सक्रिय रहते तो सपा यूपी में बाज़ी पलट भी सकती थी। राहुल गांधी की इसी निष्क्रियता के चलते राजस्थान से लेकर पंजाब तक और छत्तीसगढ़ से लेकर मध्यप्रदेश तक पार्टी आपस में ही झगड़ रही है।
वजह यही है ये दूसरी या तीसरी पीढ़ी के वो नेता है जिन्हें थाली में रखकर चीजें मिली हैं। इन्होंने बचपन से आरामतलबी देखी है। ये राजनीति भी अपने ही उसी कंफर्ट ज़ोन में रहकर करना चाहते हैं।
ये वो नालायक बच्चे हैं जिन्हें लगता है कि एग्ज़ाम से एक दिन पहले क्लास में टॉप कर जाएंगे। वो भी उस स्टूडेंट के खिलाफ जो गर्मियों की छुट्टियों में नानी के घर जाने के बजाए अगली क्लास में टॉप करने की तैयारी करने लगता है। जो एक चुनाव जीतने के बाद अगले दिन से ही दूसरे चुनाव की तैयारियों में लग जाता है। जिसके पास नेताओं, प्रचारकों, संगठन और पैसे की भरपूर ताकत है।
एक के बाद एक परिवारवादी पार्टियों के साथ यही हो रहा है। मगर बजाए अपने गिरेबान में झांकने के आप हर बार ये कह देते हैं कि बीजेपी हमें तोड़ने की कोशिश कर रही है।
अरे भैया, जब आपका ही डिफेंस कमज़ोर है तो सामने वाली टीम का मिडफिल्डर या स्ट्राइकर तो गोल करेगा ही। मगर बजाए अपनी रक्षापंक्ति को मज़बूत करने के, अपने ही गोलकीपर के मुंह पर पानी की छींटे मारने के, आप सामने वाली टीम पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि वो हर बार गोल पोस्ट खुला देखकर गोल क्यों मार देती है!
भाई, ये राजनीति का खेल है और ये खेल दुनिया में किसी भी खेल से ज़्यादा निर्मम, प्रतिस्पर्धी और बेरहम होता है मगर आप अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि फुलटॉस मिले तो मैं छक्का मार दूं।
आसान गेंद को सीमा पार पहुंचाने की इसी बचकानी ख्वाहिश में आपके अपने ही लोग सीमा पार करे दूसरे राज्यों में चले गए और आप अब भी कमरे में बैठकर संजय राउत की घटिया तुकबंदियों पर वाह वाह कर रहे हैं।
जिसका नतीजा कि आज आपको अपने ही मुंह की खानी पड़ी, अब ऐसे में अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो केंद्रीय एजेंसियां भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों पर जहां नकेल कस रही है वहीं राज्य की एजेंसियां भी तो हरी ताकत बनेगी जिसे खेल पाना काफी मुश्किल होगा प्रमाण के रूप में देखा जाए तो महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री अनिल देशमुख और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के सबसे करीबी नवाब मलिक सलाखों के पीछे है।
वणी:- दैंनदिन शिक्षणासोबत विद्यार्थ्यांनी नियमित खेळणे आवश्यक आहे. खेळामुळे शरीर निरोगी राहते. व बुध्दी तल्लख होते....
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